बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं


                                                     
















ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं
बिना बोले कभी आंसू बहुत कुछ बोल जाते हैं
समझने के लिए इनको मोहोब्बत का सहारा है
......नहीं तो देखने वाले तमाशा ही बनाते हैं ||

सिसक हो बेवफाई की कसक चाहे जुदाई की
पिघलता है सभी का दिल हवन की आहुती जैसे
ख़ुशी नमकीन पानी से अधिक रंगीन बनती है
कभी ग़मगीन लम्हों की सजी हो आरती जैसे ||

कहीं जब दूर जाए लाडला माँ से जुदा होकर
बहाए प्रेम के मोती दुआएं जब निकलती हैं
करे जब याद माँ का घर बहू जो बन गयी बेटी
मिलन की प्यास आँखों में सम्हाले ना सम्हलती है ||

सुहागन सेज पर बैठी अकेली याद में उनकी
जुदाई की अमावास में अकेली रात को रोये
कभी अंगड़ाइयाँ देती गवाही प्रेम उत्सव की
तपिश बीते हुए कल की जलाए आग जो सोये ||

जब भाव वंदन का बना- जगदीश के घर पर
बरसता है समर्पण प्रेम का मोती निगाहों में
समझने के लिए बचता नहीं कुछ गीत गोपी का
किशन को मांगती क्यूँ थी बुलाती थी दुआओं में ||


हजारों रंग के एहसास हैं- लाखों कहानी है
कोई कीमत समझता है कोई कीमत लगाते हैं
ये मोती प्यार के भी हैं कभी तकरार के भी हैं
ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं

समझने के लिए इनको मोहोब्बत का सहारा है
......नहीं तो देखने वाले तमाशा ही बनाते हैं ||..............मनोज
  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें