शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

राजनीति के सिलबट्टे पर घिसता पिसता आम आदमी

+++++++++++++++++++++++++++++++++++
राजनीति के सिलबट्टे पर घिसता पिसता आम आदमी 
मजहब के मंदिर मस्जिद पर बलि का बकरा आम आदमी ||
राजतंत्र के भ्रष्ट कुएं में पनपे ये आतंकी विषधर 
विस्फोटों से विचलित करते सबको ये बेनाम आदमी ||

क्या है हिन्दू, क्या है मुस्लिम क्या हैं सिक्ख इसाई प्यारे
लहू एक हैं - एक जिगर है एक धरा पर बसते सारे
एक सूर्य से रौशन यह जग , एक चाँद की मस्त चांदनी
विस्फोटों से विचलित करते सबको ये बेनाम आदमी ||

चाँद देखकर ईद मनाओ और पूज कर पूरनमासी
गीता पढ़कर धर्म जगाओ पढ़ कुरान आयत पुरवा सी
गुरुवाणी में सत्य दरश है ,त्याग बाइबल की अनुगामी
विस्फोटों से विचलित करते सबको ये बेनाम आदमी ||

खून बहाकर क्या पाओगे , ख़ाक कोई जन्नत जाओगे
मरने से तुम भी डरते हो तुम क्या मौत बदल पाओगे
खुदा देख पछताता होगा किसने ये बन्दूक थमाई
विस्फोटों से विचलित करते सबको ये बेनाम आदमी ||

याद रहे मेरे भारत में भगत सिंह भी हैं ,गाँधी भी
शांति मार्ग के बुद्ध देव भी , राम कृष्ण जैसी आंधी भी
यही इशारा काफी होगा समझदार तुम भी हो काफी
विस्फोटों से विचलित करते सबको ये बेनाम आदमी ||.............. manoj
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++

4 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत उम्दा पंक्तियाँ ..भाव पूर्ण रचना ... वहा बहुत खूब
    मेरी नई रचना
    खुशबू
    प्रेमविरह

    जवाब देंहटाएं
  3. बेचारा आम आदमी ... ओर कर भी नहीं पाता कुछ ...
    अच्छी रचना है ...

    जवाब देंहटाएं