कभी नहीं बन सकता हूँ मै हरिश्चंद्र जी का अनुगामी
..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||
कितने ही शब्दों को मैंने सच्चाई से डरते देखा
अपने ही भावों को अक्सर अंतर्मन में मरते देखा
दुःख की सर्द सुबह और रातें पीड़ा की गर्मी भरते हैं
आहों की स्वरलहरी दबकर आत्मपीड मंथन करते हैं
कल्पित दुनिया नहीं मिटा सकती है सच की सूनामी
..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||
नहीं मिला है मुझे अभी तक दर्पण जैसा परम हितैषी
खोजे केवल मुझको मुझमे स्वार्थ रहित हो छाया जैसी
..ठगा हुआ व्यापारी हूँ मै मोल भाव की बाजारी का
भटका हुआ पुजारी हूँ मै प्रेम द्वार से गिरधारी का ||
रीत रिवाजों की दुनिया में कौन लिखेगा नयी कहानी
..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||
माया के अंतर्द्वंदों से आन्दोलन जब भी करता हूँ
मार्ग भरा है कंटक वन से चलने से अब भी डरता हूँ
भक्ति भाव की सीमाओं पर दुनिया की लाचारी देखूं
पार करूँ भी तो कैसे मै अपनों की जब क्यारी देखूं
मानवता के अवशेषों से नहीं बदल सकती बदनामी
..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||.............मनोज
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