मौत के आगोश में भी गुनगुनाकर देखिये
दुश्मनों के शहर में भी घर बनाकर देखिये ।।
कोशिशों ने साथ छोड़ा हो कभी तेरा अगर
हौसले को फिर जरा सा आजमाकर देखिये ।।
देश चाहे सो रहा हो सांसदों की लोरियों से
क्रांति का उदघोष उनको फिर सुनाकर देखिये ।।
रात की खामोशियों में खो गयी इंसानियत भी
अब घर जलाना छोड़ दो दीपक जलाकर देखिये ।।
कौन से मजहब धरम में मौत की आयत लिखी हैं
.....उन किताबों को कभी गंगा बहाकर देखिये ।।........मनोज
दुश्मनों के शहर में भी घर बनाकर देखिये ।।
कोशिशों ने साथ छोड़ा हो कभी तेरा अगर
हौसले को फिर जरा सा आजमाकर देखिये ।।
देश चाहे सो रहा हो सांसदों की लोरियों से
क्रांति का उदघोष उनको फिर सुनाकर देखिये ।।
रात की खामोशियों में खो गयी इंसानियत भी
अब घर जलाना छोड़ दो दीपक जलाकर देखिये ।।
कौन से मजहब धरम में मौत की आयत लिखी हैं
.....उन किताबों को कभी गंगा बहाकर देखिये ।।........मनोज
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